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ये कहानियाँ इतिहास नहीं हैं बावजूद इसके इन कहानियों को ऐतिहासिक दस्तावेज़ कहा जा सकता है क्योंकि
इनका आधार हमारे देश के इतिहास का सत्य है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के सत्तर साल बाद भी जम्मू – कश्मीर की सरकारें क़ानून की आड़ में राज्य के उपेक्षितों पर
जिस तरह अत्याचार ,अनाचार करती रही हैं वह दिल दहलाने वाला है।ये कहानियाँ जम्मू कश्मीर में सत्तर सालों
की सरकारी मनमानी का कच्चा चिट्ठा पाठक के सामने प्रस्तुत करती हैं।
पिछली चार पीढ़ियों के दर्द की गाथा है “ सच तो यही है “ । कहानियों की दुनिया में पहली बार, इस विषय
पर, सत्य घटनाओं को आधार बनाकर कहानियाँ बुनने का प्रयास किया गया है।कहानियाँ पठनीय हैं तथा मन
को उद्वेलित करनेवाली भी हैं।
“शशि-भारती” प्रथम- वर्ष बी ए ( अनिवार्य हिन्दी) के विद्यार्थियों के लिए सम्पादित पाठ्यपुस्तक है। संपादिका
ने हिन्दी साहित्य जगत के सुप्रसिद्ध लेखकों तथा कवियों की रचनाओं के माध्यम से स्वतंत्र भारत की कथा
कहने के साथ-साथ हिन्दी साहित्य के विकास की गाथा प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है।किशोरवय के
विद्यार्थियों को पुस्तक पठनीय लगे, रुचिकर लगे इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है।
“आठवें दशक के प्रमुख उपन्यासों का कथ्य विश्लेषण” पुस्तक में सात अध्यायों के अंतर्गत युगीन परिस्थितियों
को तथा १९७१ से १९८० तक के शीर्ष साहित्यिक उपन्यासों के कथ्य को विश्लेषित किया गया है।
लेखिका का मानना है कि आठवें दशक के उपन्यासकारों का फलक बहुत विस्तृत रहा है, उपन्यासकारों ने
यथार्थ के बाह्य तथा आंतरिक दोनों रूपों को चित्रित किया है। खोखले आदर्शों के बजाय वास्तविकता को
प्रस्तुत किया है।पुस्तक में सामाजिक वस्तुस्थिति, राजनीतिक असंगतियाँ, ग्रामांचल की समस्याएँ, नगरबोध की
अभिव्यक्ति तथा स्त्री-पुरुष संबंधों को केंद्र में रखकर लिखे गए उपन्यासों का कथ्य सहज और सरल रूप में
रेखांकित किया गया है।
Publisher: Prabhat Prakashan
Publisher: Pridrishy prakashan
Publisher: Narayan prakashan
Awarded with Maharashtra Hindi Sahitya Academy Puraskar



